Book Review by Dr. Ramanuj Pathak

 

पुस्तक समीक्षा- (अंधविश्वास, पाखंड ,जादू टोना, टोटका, पर करारा प्रहार करती पुस्तक "वैज्ञानिक दृष्टिकोण") __ शिक्षा विभाग में नवाचारी शिक्षकों की नितांत कमी सी है आज शिक्षक सरकारी नौकरी पर आ जाने के बाद केवल अपने तक सीमित रह जाता है ,पर मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग में शाजापुर जिले में उत्कृष्ट विद्यालय में जीव विज्ञान विषय के उच्च माध्यमिक शिक्षक ओम प्रकाश पाटीदार इस मिथक को तोड़ते हैं । भारत सरकार शिक्षा विभाग द्वारा राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुके ओम प्रकाश पाटीदार को मध्य प्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद अर्थात एमपीसीएसटी भोपाल द्वारा राज्य स्तरीय  नवाचारी विज्ञान शिक्षक पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।ओम प्रकाश पाटीदार आम शिक्षकों की भांति ना थके हैं, ना हारे हैं, ना ही बेबस हैं ना ही मजबूर हैं। बाकायदा एक कर्म योगी की भांति एक विज्ञान शिक्षक का धर्म समझते हैं मर्म समझते हैं तभी तो विज्ञान लोक व्यापी करण एवं विज्ञान संचार हेतु विद्यार्थियों एवं आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के उद्देश्य से खुद की एक वेबसाइट में तकरीबन 800 से अधिक विषयों पर ब्लॉग लेखन कर चुके हैं , जिन्हें भारत ही नहीं बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों एवं छात्रों द्वारा पढ़ा जाता है सराहा  एवं समझा जाता है। अभी हाल ही में प्रतिष्ठित एशियन प्रेस बुक्स कोलकाता द्वारा ओम प्रकाश पाटीदार द्वारा लिखित ऐसा क्यों होता है "वैज्ञानिक दृष्टिकोण" पुस्तक प्रकाशित की जा चुकी है। जिसे स्कूलों कालेजों एवं विश्वविद्यालय के विद्वान आचार्यों एवं छात्रों द्वारा हाथों-हाथ लिया गया देखते ही देखते 2021 की प्रथम छमाही में लगभग इस किताब की 10000 प्रतियां  बिक्री हो चुकी हैं,और हो भी क्यों ना पुस्तक इतनी सुंदर जो लिखी गई है । 
लेखक ओम प्रकाश पाटीदार के सुदीर्घ एवं गहनअध्ययन और चिंतन का परिणाम है ,"वैज्ञानिक दृष्टिकोण"  पुस्तक कुल पांच खंडों में विभक्त है ।प्रथम खंड में विज्ञान समाज तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर लेखन किया गया है जिसमें तकरीबन 12 आलेख हैं जैसे "वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है"? धर्म अध्यात्म विश्वास तथा अंधविश्वास का परस्पर संबंध क्या है ?विज्ञान तथा  छद्म विज्ञान क्या है? विज्ञान और अंधविश्वास दोनों एक साथ कैसे हो सकते हैं? क्या झाड़-फूंक द्वारा बीमारी का इलाज संभव है? आदि। पुस्तक के द्वितीय खंड में "चमत्कार बनाम विज्ञान" के सिद्धांत पर ओम प्रकाश पाटीदार ने पूरी तबीयत से लिखा है जिसमें 11 आलेख सम्मिलित हैं जैसे "तांत्रिक अपनी शक्ति से नहीं बल्कि विज्ञान के प्रयोग से आग जला देते हैं". नीम हकीम पीलिया को झाड़ते समय हाथों से पीला रंग कैसे निकाल देते हैं? तांत्रिक नींबू  से  खून कैसे निकाल देते हैं? क्या त्रिशूल को जीभ के आर पार निकाला जा सकता है ?ऐसे आलेख सम्मिलित हैं। तृतीय खंड "मानव शरीर कुछ जाना कुछ अंजाना" पर लिखते हुए ओम प्रकाश पाटीदार बताते हैं कि क्या हाथ पैर में छह उंगलियां होना शुभ होता है? क्या शरीर पर तिल होना लाभदायक होता है? क्या घर से निकलते समय छींकना अशुभ होता है ?लड़कियों को दाढ़ी मूंछ क्यों नहीं होती हैं ?गंजापन सिर्फ पुरुषों में ही क्यों होता है? मुहासे चेहरे पर ही क्यों होते हैं?नवजात शिशु अपनी मुट्ठी क्यों बंद किए रहते हैं? बस में यात्रा करते समय उल्टी क्यों आती है ? क्या सांवली त्वचा फेयरनेस क्रीम से गोरी हो जाती है ?सर्दियों में मुंह से धुआं क्यों निकलता है?इस प्रकार इस खंड में लगभग 81 आलेख सम्मिलित हैं जो घटनाओं का सटीक एवं सार्थक विश्लेषण करते हैं।ढोंग, पाखंड ,अंधविश्वास, पर करारी चोट करते हैं।चतुर्थ खंड "प्राणी जगत ऐसा क्यों होता है" में  उल्लू रात के अंधेरे में कैसे देख लेता है? गिरगिट अपना रंग कैसे बदलता है? क्या सांप दूध पीते हैं ?क्या छिपकली जहरीली होती है ?क्या सारस पक्षी दांपत्य जीवन जीता है? कुत्ते पागल क्यों हो जाते हैं? शाम के समय मच्छर सिर में क्यों मंडराते हैं? बिल्ली की मूछें क्यों होती हैं ?क्या गधा एक मूर्ख प्राणी होता है? जैसे कोतुहल पूर्ण एवं जिज्ञासा को पूर्णतह शांत करने वाले लगभग 65 वैज्ञानिक आलेख सम्मलित हैं। पंचम खंड जैविक अस्तित्व के आधार पेड़ पौधों के लिए समर्पित है ,"पादप जगत ऐसा क्यों होता है" इस खंड के अंतर्गत छुईमुई की पत्तियों को हाथ लगाने पर क्यों सिकुड़ जाती हैं ?गाजर घास को घुसपैठिया पौधा क्यों कहते हैं ?केला का फल मुड़ा हुआ क्यों होता है? क्या बांस के पौधे में फूल आने पर अकाल पड़ता है? सूरजमुखी के फूल सूर्य की दिशा में क्यों मुड जाते हैं ?क्या पौधे भी कीटभक्षी होते हैं ?समेत 21 आलेख सम्मिलित हैं। कुल 209 पृष्ठों की यह पुस्तक जिसकी कीमत मात्र₹300 है। 
"वैज्ञानिक दृष्टिकोण" पुस्तक जितनी उपयोगी छात्रों के लिए उतनी ही उपयोगी शिक्षकों के लिए है, शोधार्थियों के लिए है। आम भारत में अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण न जाने कितने लोग बाबाओं, ढोंगियों, ठगों और तांत्रिकों का शिकार होते हैं ऐसे लोगों की करतूतों एवं कारनामों पर  पुस्तक में करारा प्रहार किया गया है। "जादू नहीं विज्ञान है समझना समझाना आसान है "इस मूल थीम पर पूरी पुस्तक आधारित है पुस्तक के अनुसार भूत ,चुड़ैल, डायन, सन्यासी संखनी डंकनी का कोई अस्तित्व नहीं होता है। कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए विज्ञान के चमत्कारों का उपयोग करके भोली भाली जनता को मूर्ख बनाते हैं और मनमाना उनसे धन वसूल करते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण आमखास में यदि विकसित हो जाए तो गरीबी अपने आप दूर हो जाए। वैज्ञानिक चेतना के द्वारा देश से दरिद्रता गायब हो सकती सकती है ,देश विकसित हो सकता है। पुस्तक पढ़ने के बाद विज्ञान के प्रति एक अलग दृष्टिकोण विकसित होता है तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है क्या उचित है क्या अनुचित है यह भी समझ आती है। देश के हर विद्यालय में, पुस्तकालय में, इस तरह की पुस्तक की नितांत आवश्यकता है 190 आलेखों युक्त इस पुस्तक का मूल्य केवल ₹300 है भाषा सरल सौम्य है, हर पाठक को समझ में आने वाली है तथा अमेज़न फ्लिपकार्ट जैसे कई बड़े प्लेटफार्म में भी पुस्तक उपलब्ध है ।देश के हर व्यक्ति को, शिक्षकों को , भौतिकवैज्ञानियो को ,रसायन शास्त्रियों को, वनस्पति शास्त्रियों को, भूगर्भ शास्त्रियों को, आचार्यों को, छात्रों को ,वैज्ञानिक दृष्टिकोण पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। पुस्तक में संकलित एक वाक्य कितना सुंदर लिखा है कि "कोई व्यक्ति चमत्कार दिखाता है और अपने चमत्कारों की जांच नहीं करने देता तो वह पाखंडी है, कोई व्यक्ति उन चमत्कारों पर आंख मूंदकर विश्वास कर लेता है तो वह अंधविश्वासी है ,जो व्यक्ति उन चमत्कारों की वास्तविकता के बारे में सोचना भी नहीं चाहता है तो वह व्यक्ति मूर्ख है।" 


द्वारा : डॉक्टर रामानुज पाठक 
सतना मध्यप्रदेश।
संपर्क 7974246591/7697179890.


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1 Comments

  1. बिल्कुल सही
    दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है

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