खाना खाने के लिए हमारे शरीर में दांत बहुत जरूरी हिस्सा होता है। दोस्तों हंसना किसी को पसंद नहीं है। अगर आपके दांत काफी सफेद है, तो आपके हंसी में चार चांद लगाते हैं। लेकिन दोस्तों क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे दांत सफेद ही क्यों होते हैं। यानी हमारे दांतो का रंग सफेद ही क्यों होता है। तो चलिए आज के इस पोस्ट में हम श्री डी. एन. सुरेश अन्ना से जान लेते हैं कि हमारे दांतो का रंग सफेद क्यों होता है ?
हमारे दांत अलग-अलग स्तर से बने हुए होते हैं। यानी दांतो पर अलग-अलग परत (Layer) होते हैं। दांत की सब से बाहर की परत को इनेमल (Enamel) कहा जाता है, उस इनेमल में कैल्शियम (Calcium) ज्यादा होता है। इस कैल्शियम की वजह से ही हमारे दांतो का रंग सफेद होता है। साथ ही दोस्तोंइस इनेमल लेयर के अंदर और एक लेयर होती है, जिसे डेंटिन (Dentin) कहा जाता है, जो पीले रंग का होती है।
अगर समय के साथ-साथ इनेमल का लेयर पतला होता जाता है, तो अंदर का डेंटिन का लेयर दिखने लगता है जो पीले रंग का होता है। जिससे हमारे दांत धीरे-धीरे पीले दिखाई देने लगते हैं। यानी दांत दिखने में कम सफेद दिखने लगते हैं।
- हमारे दांतों पर पायी जाने वाली बाहरी परत एनेमल कहलाती है। ये परत दांतों की सुरक्षा करती है। एनेमल शरीर का सबसे कठोर ऊतक होता है लेकिन इसके छोटे-छोटे टुकड़ों में दरार आने के बाद उनकी मरम्मत नहीं की जा सकती क्योंकि एनेमल मृत कोशिकाओं से बना होता है।
- एनेमल कमजोर होने पर दाँत कमजोर होने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है इसलिए दांतों की इस सुरक्षा परत का विशेष ध्यान रखना जरुरी होता है। ये एनेमल सफेद रंग की होती है इसलिए दाँतों का रंग भी सफेद होता है।
- दाँतो का मुख्य संघटक केल्सियम होता है । दाँतो की सबसे बाहरी और सबसे कठोर परत इनेमल भी विशुद्ध केल्सियम से निर्मित होती है । केल्सियम का अपना स्वयं का रंग सफेद होता है इस कारण से दाँत भी सफेद रंग के होते है ।
- हमारे दांत कई परतों से मिल कर बना हुआ होता है जिसमे सबसे बाहरी परत को एनामेल (Enamel) कहा जाता है और जिसका मुख्य तत्व कैल्शियम होता है यह एनेमल सफ़ेद रंग का होता है और इसी की उपस्थित के कारण हमारे दांत सफेद दिखाई देते हैं यह एनामेल शायद मृत कोशिकाओं से बना हुआ होता है जिसके कारण दांत में दरार पड़ने के बाद रिकवर नहीं होते है विज्ञानिको के द्वारा यह सिद्ध कर दिया गया है की दांतो का वास्तविक रंग पूर्ण रूप से सफेद ना हो कर हल्का पीला होता है और हल्के पीले रंग के दांत सफेद दांत की तुलना में अधिक मजबूत होते है
- इनेमल लेयर के अंदर और एक लेयर होता है, जिसे डेंटिन (Dentin) कहा जाता है, जो पीले रंग का होता है।) अगर वक्त के साथ-साथ इनेमल का लेयर पतला होता जाता है, तो अंदर का डेंटिन का लेयर दिखने लगता है जो पीले रंग का होता है। जिससे हमारे दांत धीरे-धीरे पीले दिखाई देने लगते हैं। यानी दांत दिखने में कम सफेद दिखने लगते हैं।
जानें कब और क्यों बदलता है दांतों का रंग-
- दांत का रंग सीधे तौर पर आपकी हेल्थ से जुड़ा है।
- अगर हम हेल्दी हैं तो हमारे दांत का रंग स्ट्रा यल्लो होगा।
- वहीं यदि दांत का रंग इससे अलग है तो माने कि आप किसी समस्या या बीमारी से जूझ रहे हैं।
- दांत का रंग सफेद, काला, भूरा होना भी एक समस्या है।
- गर्भावस्था के खानपान से बदल सकता है शिशु के दांत का रंग
- गर्भावस्था में मां के खानपान का असर शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
- यदि मां ने पौष्टिक आहार का सेवन नहीं किया, खाने में मिनरल, विटामिन की कमी हुई तो इससे भी शिशु को दांतों और मुंह की बीमारी होने के साथ उसके दांत का रंग बदल सकता है। इसे जन्मजात, कॉन्जीनाइटल (congenital) बीमारी कहा जाता है।
- बच्चे के दांतों का रंग तब बदलता है जब ऊपरी सतह इनैमल (enamel) एकदम पीला हो जाता है। इस प्रक्रिया को मेडिकल टर्म में एमिलोजेनिसिस इमपरफेक्टा (amelogenisis imperfecta) कहा जाता है।’
- इस केस में दांत का रंग पीला व भूरा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान मां को संपूर्ण पौष्टिक आहार नहीं मिलने, मिनरल व विटामिन की कमी होने से एमब्रियो (embryo) भ्रूण को पोषक तत्व नहीं मिल पाते। ऐसे में शिशु का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता और आगे चलकर उसे मुंह की बीमारी होती है और दांत का रंग बदलता है।
पानी का भी दांत का रंग से है कनेक्शन
- एक्सपर्ट बताते हैं कि हम जो पानी पीते हैं उसका हमारे दांतों पर साफ असर होता है उस कारण भी दांत का रंग बदल सकता है और मुंह की बीमारी हो सकती है। भारत में कोई भी व्यक्ति बोरवेल, कुआं, हैंडपंप, कम्युनिटी वाटर सप्लाई का ही पानी पीता है। कम्युनिटी वाटर सप्लाई को प्योरिफाइड माना जाता है।
- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन पुष्टि करता है कि पीने के पानी में 1.5 से लेकर 2 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) फ्लोराइड होना आवश्यक है। वहीं पानी में फ्लोराइड व मिनरल की मात्रा का नियमित होना भी जरूरी है।
- फ्लोराइड का इससे कम या ज्यादा होना सेहत व दांतों के लिए घातक है। जरूरी है कि पानी में फ्लोराइड का बैलेंस बना रहे। बैलेंस ना होने पर या कम होने पर दांतों का रंग पीला हो जाता है, दांतों का ऊपरी सतह (इनैमल) टूटकर झड़ने लगता है। इससे दांत का रंग बदलने के साथ ही फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने पर हमारे दांत सामान्य से यल्लोइश ब्राउन हो जाते हैं।
- कुएं, हैंडपंप आदि के पानी में मिनरल ज्यादा होता है ऐसे में उसका सेवन करने पर हमारे दांतों में कालापन (blakish) साफ तौर पर नजर आएगा। ऐसे में बोरवेल, कुआं, हैंडपंप आदि से पानी पीने वाले लोगों को घर में फिल्टर लगवाना चाहिए ताकि पानी की सही मात्रा का सेवन करें व हमारे स्वास्थ पर इसका कोई विपरीत असर न हो।
- दांत का रंग बदलने से युवा रहते हैं सचेत- दांत का रंग बदलने को लेकर युवा वर्ग काफी सचेत रहते हैं, क्योंकि यह भी खूबसूरती का अभिन्न अंग है। जानकारी के आभाव में ज्यादातर युवाओं का मानना है कि सफेद दांत होना ही स्वास्थ व शरीर के लिए सही है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
- ज्यादा सुंदर दिखने की चाह में युवा इतना ज्यादा ब्रश करते हैं जिससे हमारे दांतों का ऊपरी सतह इनैमल घिस जाता है। इस कारण भी मुंह की बीमारी हो सकती है। फिर दांत कमजोर होने के साथ सफेद दिखने लगता है। शुरुआत में युवाओं को लगता है कि वो सही कर रहे हैं, लेकिन कुछ साल बाद उनको लक्षण महसूस होते हैं।
- सनसनाहट, कुछ भी ठंडा-गर्म खाद्य व पेय खाने पर सनसनाहट-झनझनाहट महसूस होती है।
- एक्सपर्ट बताते हैं कि पूरे विश्व में स्ट्रा यल्लो ही स्वस्थ दांतों की पहचान हैं। वहीं दांतों की देखभाल को लेकर सचेत रहे। नियमित ब्रश करें। जरूरी है कि दांतों का रंग किसी और रंग का होने की बजाय स्ट्रा यल्लो ही हो।
- 20 से 60 साल के लोगों में दिखता है दांतों का अलग-अलग रंग
- एक्सपर्ट बताते हैं कि पुरुष हो या महिलाएं 20-60 साल के लोगों के दांत का रंग अलग अलग देखने को मिलता है।
- क्योंकि इस उम्र के लोग सबसे ज्यादा खैनी, पान, गुटका, तंबाकू, धूम्रपान का सेवन करते हैं। ऐसा करने वालों के दांतों में लालपन, कालापन, पीलापन, मसूड़ों का सूखना, दांतों का कमजोर होना, दांतों का पतला होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इस उम्र के लोगों का दांत का रंग काफी ज्यादा बदला हुआ मिलता है।
- डा. सिकंदर बताते हैं कि इससे दांत का रंग न केवल बदलता है बल्कि दांतों की क्वालिटी भी खराब होती है। सहयोगी मसूड़े पर भी असर पड़ता है, वो कमजोर होते है।
- धूम्रपान करने से जहां दांत हल्के काले होते हैं वहीं तालु (palate) काला हो जाता है, , मसूड़ा गर्म भांप से वास्तविक जगह से खिसकता है। वहीं दांत भी कमजोर होते हैं। कई बार दांत हिलकर गिर भी जाता है।
- 60 साल के बाद दांतों का ब्राउन होना सामान्य
- डॉक्टर बताते हैं कि 60 साल की उम्र के बाद दांत का रंग बदलता है, यह सामान्य से ब्राउन (भूरा) हो जाता है। इस उम्र तक इनैमल काफी घिस जाता है। वहीं डेंटीन (dentine) हल्का यल्लोइश हो जाता है। इस कारण दांत का रंग ब्राउनिश हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दांतों को घिसाई के कारण इनैमल पर भी असर पड़ता है, ऐसे में लोगों को कनकनाहट होती है जो इस उम्र के लोगों में सामान्य है।
- डायबिटिज के मरीजों को दिल की बीमारी का खतरा
- एक्सपर्ट बताते हैं कि डायबिटिज के मरीजों को दांतों की खास देखभाल करनी चाहिए। क्योंकि दांतों का बैक्टिरियल इंफेक्शन मुंह से शरीर में जाएगा तो इससे दिल की बीमारी का भी खतरा बढ़ेगा। क्योंकि यह इंफेक्शन लंग्स से खून में होते हुए दिल व शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। इससे कार्डिक अरेस्ट (cardiac arrest), इशिमिया (ischemia, lack of blood supply) जैसी समस्या हो सकती है।
- कार्डियोलॉजिस्ट भी दिल संबंधी ऑपरेशन के पूर्व सलाह देते हैं कि डेंटल क्लीयरेंस जरूर लें, यानी यदि दांतों में किसी प्रकार की बीमारी हो तो सबसे पहले उसके ट्रीटमेंट के बाद ही दिल संबंधी किसी बीमारी का ऑपरेशन होता है।
- कैंसर की बीमारी से पीड़ित मरीजों को रेडिएशन से पहले, किसी भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट के पहले भी डेंटल क्लीयरेंस जरूरी होता है ताकि मुंह का बैक्टीरिया या इंफेक्शन शरीर के अन्य भागों को प्रभावित ना करें।
दांतों के कार्य
- हमारे शरीर के हर जरुरी अंग की तरह हमारे दाँतों का भी विशेष महत्त्व और भूमिका होती है।
- अपने पसंदीदा आहार को चबा चबाकर खाने में ये दांत ही तो हमारी मदद करते हैं।
- इसके अलावा बोलने में मदद करने वाले दांत स्माइल करने के लिए भी तो जरुरी होते हैं।
- हमारे मुँह में 32 दांत होते हैं जिनमें से 16 दांत ऊपरी जबड़े में और 16 निचले जबड़े में होते हैं और ये सारे दांत मिलकर खाने को कुतरने, तोड़ने और चबाकर खाने में मददगार साबित होते हैं।
- पूरे जीवन में दो बार दांत निकलते हैं जिन्हें अस्थायी और स्थायी दांत कहते हैं।
- अस्थायी दाँतों की संख्या ऊपरी और निचले जबड़ों में 10-10 होती है। इन्हें दूध के दांत भी कहा जाता है। ऐसे दांत शिशु के 6 महीने का होने के बाद निकलने शुरू होते हैं और 6-7 साल की उम्र में गिरने लगते हैं।
- इनकी तुलना में स्थायी दांत 6 साल की उम्र में निकलने शुरु होते हैं और 25 साल की उम्र तक सारे स्थायी दांत आ जाते हैं।
- छोटे से दिखने वाले दांत के तीन भाग होते हैं- शिखर, ग्रीवा और मूल।
मानव दाँत की संरचना तथा प्रकार-
भोजन को काटने, तोड़ने और पीसने के लिए चार तरह के दांत पाए जाते हैं –
- कृन्तक या छेदक दन्त (इनसाइजर्स)- ये तेज़ धार वाले छैनी जैसे चौड़े होते हैं तथा भोजन के पकड़ने, काटने या कुतरने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 4 होती है।
- भेदक या रदनक दन्त (कैनाइन्स)- ये नुकीले होते हैं और भोजन को चीरने–फाड़ने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 2 होती है।
- अग्रचर्वणक दन्त (प्रीमोलर्स)- ये किनारे पर चपटे, चौकोर व रेखादार होते हैं। इनका कार्य भोजन को कुचलना है। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 4 होती है।
- चर्वणक दन्त या (मोलर्स)- इनके सिर चौरस व तेज़ धार युक्त होते हैं। इनका मुख्य कार्य भोजन को पीसना है। प्रत्येक जबड़े में इनकी संख्या 6 होती है।
दांत की संरचना -
- शिखर crown) - दांत का जो भाग दिखाई देता है उसे क्राउन कहते हैं ।
- इस भाग पर एक परत होती हैं इसे इनेमल कहते हैं।
- दाँत की चमक तथा सफ़ेदी इनेमल के कारण ही होती हैं।
- इनेमल शरीर का सबसे कठोर भाग होता है।
- Neck- दांत का जो भाग मसूड़ों में धसा होता है उसे neck कहते हैं ।
- रूट- दांत का जो भाग सॉकेट या गर्त में धसा होता है उसे रूट कहते हैं ।
दांतों की देखभाल के लिए टिप्स
- रोजाना दिन में दो बार ब्रश करें।
- कुछ भी खाद्य-तरल पदार्थ का सेवन करने के बाद कुल्ला कर मुंह साफ रखें।
- मीठा व चिपचिपा खाद्य पदार्थ का सेवन कम करने के साथ कुल्ला जरूर करें।
- फास्ट फूड जैसे पिज्जा, बर्गर, पास्ता, मैगी, नूडल्स इत्यादि का सेवन करने से बचें।
- ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें मॉडिफाई शुगर (modified sugar) हो उसका सेवन करने से परहेज करें।
- टीवी-कंप्यूटर, मोबाइल देखते समय खाना नहीं खाए, ऐसा इसलिए क्योंकि टीवी देखते समय हमारा ध्यान टीवी पर केंद्रित होता है, ऐसे में खाना लंबे समय तक मुंह में रहता है जिससे दांतों को नुकसान पहुंचता है।
- ट्रायंगल बैलेंस रखना, यहां ट्रायंगल का अर्थ समय पर खाने का सेवन करना, अच्छी गुणवत्ता का खाद्य पदार्थ का सेवन करना व साफ व स्वच्छ खाद्य पदार्थ का सेवन करने से है।
- दांतों को साफ रखने का सुरक्षित तरीका
- चारकोल का टूथपेस्ट इस्तेमाल करना लाभदायक होता है, यह दांतों के अंदर के सतह डेंटीन को भी प्रभावित नहीं करता है वहीं दांतों के सतह से धब्बे हटाता है।
- सही उपकरण का इस्तेमाल कर जैसे ओरल बी इलेक्ट्रिक टूथ ब्रश 3 डी व्हाइट ब्रश हेड का इस्तेमाल कर दांतों को अच्छे से साफ कर सकते हैं। यह भी दांतों के ऊपरी सतह पर लगी गंदगी को हटाता है।
- जानें रोजमर्रा की किन चीजों से होता दांतों को नुकसान
- ज्यादा चाय-कॉफी का सेवन करने से दांतों की बाहरी सतह पर दाग उभर आते हैं। इसका सेवन करने से ना केवल इनैमल प्रभावित होता है बल्कि दांतों में चिपचिपाहट भी होती है, ऐसे में खाद्य पदार्थ उसमें चिपक जाते हैं।
- वहीं हमें ऐसे पेय पदार्थ से भी परहेज करना चाहिए जिसमें शूगर हो।
- स्मोकिंग के अलावा खाना खाने के तुरंत बाद ब्रश करना भी दांतों की सेहत के लिए नुकसानदायक होता है।
- डॉक्टर बताते हैं कि खाना खाने के बाद शरीर में अपने आप एसिड व शुगर निकलता है जो इनैमल को मजबूत बनाता है।
- दांत का रंग बदलने में ये खाद्य पदार्थ हैं अहम भूमिका निभाते है -कुछ फल व सब्जियों का सेवन करने से भी दांत का रंग बदल सकता है। जैसे सेब व आलू का अत्यधिक सेवन दांत के रंग को बदल सकता है।
- धूम्रपान करने के साथ तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों के दांत का रंग बदल सकता है। वहीं उन्हें मुंह की बीमारी हो सकती है।
- इसके अलावा खराब डेंटल हाइजीन नहीं अपनाने से भी दांत का रंग बदलने के साथ मुंह की बीमारी हो सकती है। जैसे दांत का प्लाक हटाने के लिए एंटीसेप्टिक माउथवाश का इस्तेमाल नहीं करना।
- कुछ बीमारियों के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है।
- सिर, गर्दन जैसे जगह में यदि कीमोथैरिपी दी गई तो इससे भी दांत का रंग बदल सकता है। वहीं मुंह की बीमारी भी हो सकती है।
- वहीं कुछ दवाओं जैसे एंटीबायटिक, टेट्रासीलिन (tetracline) और डाक्सीसिलीन (doxycycline) का सेवन करने के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है।
- उम्र बढ़ने के साथ अनुवांशिक व लाइफस्टाइल में बदलाव, प्राकृतिक कारणों के अलावा किसी हादसे के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है वहीं मुंह की बीमारी हो सकती है।
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